Sanskrit vyakaran

Tuesday, 26 April 2016

अभ्यास ११

 
[ शब्दकोष =२७५]
( क) ब्राह्मण ( ब्राह्मण) , क्षत्रिय (क्षत्रिय) , वैश्य (वैश्य),  शूद्र ( शूद्र) , वर्ण ( वर्ण), मोक्ष ( मोक्ष, मुक्ति) , मूर्ख ( मूर्ख) , चोर ( चोर) , अश्व ( घोड़ा) , मोदकम् ( लड्डू) , पापम् (पाप) । (११) ।
( ख) क्रुध् ( क्रोध करना) , कुप् ( कोध करना)
द्रुह ( द्रोह करना) , ईर्ष्य् ( ईर्ष्या करना) , असूय ( बुराई निकालना) , धारि ( धारण करना, किसी का ऋणी होना) ,  स्पृह (चाहना) , निवेदि ( कहना, निवेदन करना) , उपदिश् ( उपदेश देना) , भज् ( सेवा या भजन करना) , क्रन्द् ( रोना) , रूच् ( अच्छा लगना,  चमकना) । ( १२) ।
 ( ग)  अर्थम् ( लिए) , कृते ( लिए)  (२) ।
सूचना --- ( क) ब्राह्मण ---अश्व, रामवत् ।मोदक --- पाप,  गृहवत् ।
व्याकरण ( सर्वनाम नपुं०, चतुर्थी,  अयादिसंधि)
(१) शब्दरूप --- सर्व के नपु० के पुरे रूप स्मरण करो । (देखो शब्द ० स० २९ ख)  ।
संक्षिप्तरूप लगाकर तत् आदि  ( अभ्यास १० ) के पुरे रूप बनाओ ।सूचना ---- सर्व आदि के तृतीया से सप्तमी तक पुलिग के तुल्य रूप होगे । प्र  द्वि मे अम्, ए आनि लगेगा ।तते आदि के प्र द्वि एक मे ये रूप होते है --- तत्,  यत्,  एतत्, किम्, अन्यत्, इतरत् ।
( २) धातुरूप --- क्रुध् आदि के ये रूप बनाकर लट् आदि मे 'भवति ' के तुल्य रूप चलेगे । क्रुव्यति, कुप्यति, द्रुह्यति, ईर्ष्यति, असूयति, धारयति, स्पृहयति, निवेदयति, उपदिशति, भजति, क्रन्दति । रुच् का लट् मे रोचते ( देखो अभ्यास १६ ) ।
*  नियम  ३ ८ --- ( रुच्यर्थानां प्रीयमाण)  रुच् (अच्छा लगना)  अर्थ की धातुओ के साथ चतुर्थी होती है ।जैसे   बालकाय मोदकं रोचते
पुत्राय दुग्धं रोचते ।
* नियम  ३९ --- (क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोप)  क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्य, असूय, अर्थकी धातुओ के साथ जिस पर क्रोध किया जाय, उसमे चतुर्थी होती है । रामः मूर्खाय ( राम मूर्ख पर)  क्रुध्यति, कुप्यति, द्रुह्यति, ईर्ष्यति, असूयति ।
* नियम  ४० --- कथ्, निवेदय, उपदिश्, धारय ( ऋणी होना) , स्पृह, कल्पते ( होना) , संपद्यते ( होना)  तथा हितम् ( हित) , सुखम् के साथ चतुर्थी होती है ।
जैसे --- शिष्याय ( शिष्य को)  कथयति ।राम देवदत्ताय शत ( राम दोवदत्त का सौ रू ०
धारयति । विद्या ज्ञानाय कल्पते, संपद्यते ।
*  नियम  ४१ -- ( तादर्थ्ये चतुर्थी वाच्या)  जिस प्रयोजन के लिए जो वस्तु क्रिया होती है,
उसमों चतुर्थी होती है । जैसे मोक्षाय हरिं भजति । शिशु दुग्धाय क्रन्दति ।
*  नियम  ४२ --- चतुर्थी के अर्ऱ में 'अर्थम् 'और 'कृते ' अव्ययो का प्रयोग होता है । कृते के साथ षष्ठी होती है । भोजनार्थम्, भोजनस्य कृते ( खाने के लिए)  ।
*  नियम  ४३ --- ( सधि)  ( एचोsयवायाव )
ए को अय्, ओ को अव्, ऐ का आय्, औ को आव् हो जाता है, बाद मे कोई स्वर हो तो । जैसे  ने+ अनम्  = नयनम् ।हरे +ए = हरये ।
गुरो + ए = गुरवे । गै + अक् = गायक ।द्वौ + अत्र = द्वावत्र ।।

             

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