( क) हरि ( विष्णु, सूर्य, किरण, सिंह, बन्दर) , कवि ( कवि) , यति ( सन्यासी) ,भूपति ( राजा) , सेनापति ( सेनापति) , प्रजापति ( प्रजापति, ब्रह्मा ), रवि ( सूर्य) , कपि ( बन्दर) , मुनि ( मुनि) , अग्नि ( आग) , गिरि ( पहाड़) , मरीचि ( किरण) । मेघ ( बादल) , दण्ड ( डडा) । कन्दुकम् ( गेद) । ( १५ ) ।
( ख) दह् ( जलाना) , ज्वल् ( जलना) , तप् ( तपना, तपस्या करना) , चर् ( चलना, घुमना) , वृष् (वर्ष्) ( बरसना) , गै ( गाना) । (६ )
(ग) सह, साकम्, सार्धम्, समम् ( चारो का अर्थ है, साथ) ( ८) ।
सूचना ----- ( क) हरि ---- मरीचि, हरिवत्
मेघ ---- दण्ड, रामवत् ।
कन्दुक ---- पुष्पवत् ।
( ख) दह् ----- गै भवतिवत् ।
व्याकरण ( हरि लङ्, तृतीया)
१ . शब्दरूप ---- हरि शब्द के पूरे रूप स्मरण कर ले । संक्षिप्त रूप लगाकर कवि आदि के रूप बनाओ । सभी इकारान्त पुल्गि शब्द हरिवत् ।
नियम १६ इन शब्दो मे लगेगा --- हरि, रवि, गिरि । जैसे हरिणा, हरीणाम् ।
नियम २२ -- ( पति समास एव) पति शब्द किसी के अन्त में समस्त होगा तो उसका रूप हरि के तुल्य चलेगा । जैसे भूपतिना, भूपतये, भूपते आदि ।
२ . धातुरूप ---- 'भू 'लङ् ( भूतकाल ) ।
अभवत् अभवताम् अभवन् प्र ० पु० ।
अभव अभवतम् अभवत् म ० पु० ।
अभवम् अभवाव अभवाम उ ० पु० ।
संक्षिप्तरूप एक ० द्वि ० बहु ०
( वातु से अत् अताम् अन् प्र ० पु०
पहले अ + ) अ . अतम् अत म ० पु ०
अम् आव आम उ ० पु ०
सूचना --- लङ् मे धातु के पहले ' अ ' लगेगा बाद में संक्षिप्तरूप ।जैसे --- अपठत्, अल्खित्, अदहत्, अज्वलत्, अलपत्, अचरत्, अवषत्, अगायत् । यदि धातु का प्रथम अक्षर स्वर हो तो 'आ ' लगेगा और वृद्धि होगी ।जैसे इप् >ऐच्छत्, आगम् > आगच्छत्, अस् >आसीत् ।
कारक ( तृतीया, करण)
नियम २३ -- ( साधकमतम करणम्) क्रिया के सिद्धि मे सहायक को करण कहते हैं ।
नियम २४ --- ( कर्तृक्स्णयो स्तृतीया) करण मे तृतीया होती हैं और कर्मवाच्य या भाववाच्य मे कर्ता मे ।जैसे कन्दुकेन क्रीडति ।दण्डेन चलति । रामेण गृहं गम्यते, रामेण भूयते ।
नियम --- २५ ( सहयुक्तेsप्रधाने ) सह, साकम्, समम् ( साथ अर्थ मे) के साथ तृतीया ही होती हैं ।जैसे --- जनकेन सह, साकं सार्ध सम वा गृहं गच्छति ।
नियम --- २६ ( इत्थभूतलक्षणे ) जिस चिन्ह से किसी व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है, उसमें तृतीया होती है ।जैसे -- जटाभि, यति ( जटा से सन्यासी ज्ञात होता हैं) ।
नियम -- २७ ( हेतौ) कारणबोधक शब्दो मे तृतीया होती है ।अध्ययनेन वसति ।
शब्दकोश २००
( ख) दह् ( जलाना) , ज्वल् ( जलना) , तप् ( तपना, तपस्या करना) , चर् ( चलना, घुमना) , वृष् (वर्ष्) ( बरसना) , गै ( गाना) । (६ )
(ग) सह, साकम्, सार्धम्, समम् ( चारो का अर्थ है, साथ) ( ८) ।
सूचना ----- ( क) हरि ---- मरीचि, हरिवत्
मेघ ---- दण्ड, रामवत् ।
कन्दुक ---- पुष्पवत् ।
( ख) दह् ----- गै भवतिवत् ।
व्याकरण ( हरि लङ्, तृतीया)
१ . शब्दरूप ---- हरि शब्द के पूरे रूप स्मरण कर ले । संक्षिप्त रूप लगाकर कवि आदि के रूप बनाओ । सभी इकारान्त पुल्गि शब्द हरिवत् ।
नियम १६ इन शब्दो मे लगेगा --- हरि, रवि, गिरि । जैसे हरिणा, हरीणाम् ।
नियम २२ -- ( पति समास एव) पति शब्द किसी के अन्त में समस्त होगा तो उसका रूप हरि के तुल्य चलेगा । जैसे भूपतिना, भूपतये, भूपते आदि ।
२ . धातुरूप ---- 'भू 'लङ् ( भूतकाल ) ।
अभवत् अभवताम् अभवन् प्र ० पु० ।
अभव अभवतम् अभवत् म ० पु० ।
अभवम् अभवाव अभवाम उ ० पु० ।
संक्षिप्तरूप एक ० द्वि ० बहु ०
( वातु से अत् अताम् अन् प्र ० पु०
पहले अ + ) अ . अतम् अत म ० पु ०
अम् आव आम उ ० पु ०
सूचना --- लङ् मे धातु के पहले ' अ ' लगेगा बाद में संक्षिप्तरूप ।जैसे --- अपठत्, अल्खित्, अदहत्, अज्वलत्, अलपत्, अचरत्, अवषत्, अगायत् । यदि धातु का प्रथम अक्षर स्वर हो तो 'आ ' लगेगा और वृद्धि होगी ।जैसे इप् >ऐच्छत्, आगम् > आगच्छत्, अस् >आसीत् ।
कारक ( तृतीया, करण)
नियम २३ -- ( साधकमतम करणम्) क्रिया के सिद्धि मे सहायक को करण कहते हैं ।
नियम २४ --- ( कर्तृक्स्णयो स्तृतीया) करण मे तृतीया होती हैं और कर्मवाच्य या भाववाच्य मे कर्ता मे ।जैसे कन्दुकेन क्रीडति ।दण्डेन चलति । रामेण गृहं गम्यते, रामेण भूयते ।
नियम --- २५ ( सहयुक्तेsप्रधाने ) सह, साकम्, समम् ( साथ अर्थ मे) के साथ तृतीया ही होती हैं ।जैसे --- जनकेन सह, साकं सार्ध सम वा गृहं गच्छति ।
नियम --- २६ ( इत्थभूतलक्षणे ) जिस चिन्ह से किसी व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है, उसमें तृतीया होती है ।जैसे -- जटाभि, यति ( जटा से सन्यासी ज्ञात होता हैं) ।
नियम -- २७ ( हेतौ) कारणबोधक शब्दो मे तृतीया होती है ।अध्ययनेन वसति ।
शब्दकोश २००
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