Sanskrit vyakaran

Tuesday, 19 April 2016

अभ्यास १०


(क)तत् -वह,यत् -जो,एतत् -यह,किम् -कौन, सर्व- सब,पूर्व -पहला,विश्व -सब संसार, अन्य -और,इतर -और,दैत्य -राक्षस,प्रभु -स्वामी समर्थ,पितृ -पिता पितरजन ,
(ख)दा(यच्छ्)-देना,वितृ- देना, दा- देना।
(ग)नमः-नमस्कार प्रणाम ,स्वस्ति -आशीर्वाद,स्वाहा -देवताओं के लिए अग्नि में आहुति, स्वधा -पितरों के लिए अन्नादि, अलम् -पर्याप्त बस,वषट् -आहुति साधुवाद ।
(घ)शक्त -समर्थ,समर्थ -समर्थ ।

सूचना--तत्----इतर, सर्ववत् ।
 दा---वितृ   भवितवत् ।

व्याकरण
1 सर्व शब्द के रुप पुल्लिंग में स्मरण कीजिए।
2नियम 16इन शब्दों में लगेगा -सर्व,पूर्व,विप्र,इन्द्र,प्रभु,पितृ ।

@@@@सूचना @@@@@@
(क)अकारांत सर्वनाम शब्दों में 'राम 'शब्द के रुप से ये 5 अन्तर होते हैं ।
1प्र बहु में  'ए '
2 चतु  एक   'स्मै '
3षष्ठी एक  'स्मात् '
4षष्ठी बहु  'एषाम् '
5सप्तमी एक 'स्मिन् 'लगेगा ।शेष रामवत् ।
(ख)तत्,यत्, एतत् ,किम् को पुल्लिंग में क्रमशः त,य,एत,क रूप हो जाता है ।केवल तत् और एतत् को प्रथमा एकवचन में क्रमशः सः,एषःहो जाता है ।
जैसे-तत् >सः  तौ  ते ।
2 धातुरुप -यच्छ>यच्छति, वितृ>वितरति, दा>ददाति ।
@नियम 33सर्वनाम शब्दों और विशेषण का वही लिंग,विभक्ति और वचन होता है, जो विशेष्य का होता है ।जैसे -कःनरः।कं नरम् ।केन् नरेण, का बाला ।
@नियम 34 (कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्) दान आदि क्रिया जिसके लिए की जाती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं ।
@नियम 35 (चतुर्थी सम्प्रदाने)सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है । विप्राय धनं ददाति ।
@नियम 36 (नमस्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च) नमः,स्वस्ति,स्वधा,स्वाहा,अलम् ,वषट् के साथ चतुर्थी होती है ।
जैसे -गुरवे नमः। शिष्याय स्वस्ति । अग्नये स्वाहा । पितृभ्यः स्वधा ।इन्द्राय वषट् ।हरिःदैत्येभ्यःअलम् ।
@नियम 37(सन्धि)इको यणचि
इ,ई का 'य ' ।उ,ऊ का 'व '।ऋ का 'र् ' ।लृ का 'ल ' हो जाता है ,यदि बाद में कोई स्वर हो तो । सवर्ण(वैसा ही) हो तो नहीं । जैसे ----प्रति+एकम् =प्रत्येकम् ,इ का य ।
 पठतु +एकम् =पठत्वेकम् ,उ का व ।
 पितृ+आज्ञा =पित्राज्ञा, ऋ का र ।
लृ+आकृति =लाकृति, लृ का ल ।


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