Sanskrit vyakaran

Tuesday, 12 April 2016

अभ्यास ५


(क)जनकः (पिता) ,पुत्रः (पुत्र) ,सूर्यः (सूर्य) ,चन्द्रः(चन्द्रमा) ,सज्जन: (सज्जन),दुर्जन: (दुर्जन ),प्राज्ञः (विद्वान),लोक: (संसार, लोग),उपाध्यायः (गुरु) ,शिष्यः (शिष्य) ,प्रश्नः (प्रश्न) ,क्रोश: (कोस) ,धर्मः (धर्म) ,सागरः (सागर,समुद्र) ।
(ख)तुद् (दुःख देना ),इष् (चाहना),स्पृश् (छूना),प्रच्छ्(पूछना) ।
(ग)अभितः (दोनों ओर),परितः (चारों ओर),समया (समीप),निकषा(समीप),हा(दु:ख,खेद) प्रति (ओर),अनु(पीछे,ओर)
व्याकरणं
1 शब्दरुप --"राम "शब्द के पूरे रुप ठीक से स्मरण कर लें ।पुत्र,सूर्य, चन्द्र, शिष्य, धर्म, सागर आदि अकारान्त शब्दों के रुप रामवत् बनेगा ।
2 धातुरुप "भू "लट् वर्तमान
भवति भवत: भवन्ति  प्र. पु.
भवसि भवथ: भवथ   म.पु.
भवामि भवाव: भवाम: उ.पु.
नोट--तुद् आदि के रुप भवति के तुल्य चलेंगे।
इष्> इच्छ, प्रच्छ्>पृच्छ हो जाता है ।

कारक (प्रथमा,सम्बोधन, द्वितीया)
नियम10- कर्ता (व्यक्तिनाम ,वस्तुनाम आदि )में प्रथमा होती है ।जैसे -राम: पठति
नियम 11- किसी को संबोधन करने में संबोधन विभक्ति होती है ।जैसे हे  राम!  हे कृष्ण!
नियम 12- कर्ता जिस को बहुत चाहता है उसे कर्म कहते है । (कर्तुरीप्सिततमं कर्म)
नियम13- कर्म में द्वितिया होती है ।जैसे-राम: विद्यालयं गच्छति (कर्मणि द्वितीया)
नियम 14 अभितः (दोनों ओर),परितः (चारों ओर),समया (समीप),निकषा(समीप),हा(दु:ख,खेद) प्रति (ओर),अनु(पीछे,ओर)के साथ द्वितीया होती है।
नियम 15 गति (चलना, हिलना, जाना)अर्थवाली धातुओं के साथ द्वितीया होती है ।जैसे-ग्रामं गच्छति ।वनं विचरति ।
शब्दकोश 125


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