Sanskrit vyakaran

Tuesday, 26 April 2016

अभ्यास ११

 
[ शब्दकोष =२७५]
( क) ब्राह्मण ( ब्राह्मण) , क्षत्रिय (क्षत्रिय) , वैश्य (वैश्य),  शूद्र ( शूद्र) , वर्ण ( वर्ण), मोक्ष ( मोक्ष, मुक्ति) , मूर्ख ( मूर्ख) , चोर ( चोर) , अश्व ( घोड़ा) , मोदकम् ( लड्डू) , पापम् (पाप) । (११) ।
( ख) क्रुध् ( क्रोध करना) , कुप् ( कोध करना)
द्रुह ( द्रोह करना) , ईर्ष्य् ( ईर्ष्या करना) , असूय ( बुराई निकालना) , धारि ( धारण करना, किसी का ऋणी होना) ,  स्पृह (चाहना) , निवेदि ( कहना, निवेदन करना) , उपदिश् ( उपदेश देना) , भज् ( सेवा या भजन करना) , क्रन्द् ( रोना) , रूच् ( अच्छा लगना,  चमकना) । ( १२) ।
 ( ग)  अर्थम् ( लिए) , कृते ( लिए)  (२) ।
सूचना --- ( क) ब्राह्मण ---अश्व, रामवत् ।मोदक --- पाप,  गृहवत् ।
व्याकरण ( सर्वनाम नपुं०, चतुर्थी,  अयादिसंधि)
(१) शब्दरूप --- सर्व के नपु० के पुरे रूप स्मरण करो । (देखो शब्द ० स० २९ ख)  ।
संक्षिप्तरूप लगाकर तत् आदि  ( अभ्यास १० ) के पुरे रूप बनाओ ।सूचना ---- सर्व आदि के तृतीया से सप्तमी तक पुलिग के तुल्य रूप होगे । प्र  द्वि मे अम्, ए आनि लगेगा ।तते आदि के प्र द्वि एक मे ये रूप होते है --- तत्,  यत्,  एतत्, किम्, अन्यत्, इतरत् ।
( २) धातुरूप --- क्रुध् आदि के ये रूप बनाकर लट् आदि मे 'भवति ' के तुल्य रूप चलेगे । क्रुव्यति, कुप्यति, द्रुह्यति, ईर्ष्यति, असूयति, धारयति, स्पृहयति, निवेदयति, उपदिशति, भजति, क्रन्दति । रुच् का लट् मे रोचते ( देखो अभ्यास १६ ) ।
*  नियम  ३ ८ --- ( रुच्यर्थानां प्रीयमाण)  रुच् (अच्छा लगना)  अर्थ की धातुओ के साथ चतुर्थी होती है ।जैसे   बालकाय मोदकं रोचते
पुत्राय दुग्धं रोचते ।
* नियम  ३९ --- (क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोप)  क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्य, असूय, अर्थकी धातुओ के साथ जिस पर क्रोध किया जाय, उसमे चतुर्थी होती है । रामः मूर्खाय ( राम मूर्ख पर)  क्रुध्यति, कुप्यति, द्रुह्यति, ईर्ष्यति, असूयति ।
* नियम  ४० --- कथ्, निवेदय, उपदिश्, धारय ( ऋणी होना) , स्पृह, कल्पते ( होना) , संपद्यते ( होना)  तथा हितम् ( हित) , सुखम् के साथ चतुर्थी होती है ।
जैसे --- शिष्याय ( शिष्य को)  कथयति ।राम देवदत्ताय शत ( राम दोवदत्त का सौ रू ०
धारयति । विद्या ज्ञानाय कल्पते, संपद्यते ।
*  नियम  ४१ -- ( तादर्थ्ये चतुर्थी वाच्या)  जिस प्रयोजन के लिए जो वस्तु क्रिया होती है,
उसमों चतुर्थी होती है । जैसे मोक्षाय हरिं भजति । शिशु दुग्धाय क्रन्दति ।
*  नियम  ४२ --- चतुर्थी के अर्ऱ में 'अर्थम् 'और 'कृते ' अव्ययो का प्रयोग होता है । कृते के साथ षष्ठी होती है । भोजनार्थम्, भोजनस्य कृते ( खाने के लिए)  ।
*  नियम  ४३ --- ( सधि)  ( एचोsयवायाव )
ए को अय्, ओ को अव्, ऐ का आय्, औ को आव् हो जाता है, बाद मे कोई स्वर हो तो । जैसे  ने+ अनम्  = नयनम् ।हरे +ए = हरये ।
गुरो + ए = गुरवे । गै + अक् = गायक ।द्वौ + अत्र = द्वावत्र ।।

             

Tuesday, 19 April 2016

अभ्यास १०


(क)तत् -वह,यत् -जो,एतत् -यह,किम् -कौन, सर्व- सब,पूर्व -पहला,विश्व -सब संसार, अन्य -और,इतर -और,दैत्य -राक्षस,प्रभु -स्वामी समर्थ,पितृ -पिता पितरजन ,
(ख)दा(यच्छ्)-देना,वितृ- देना, दा- देना।
(ग)नमः-नमस्कार प्रणाम ,स्वस्ति -आशीर्वाद,स्वाहा -देवताओं के लिए अग्नि में आहुति, स्वधा -पितरों के लिए अन्नादि, अलम् -पर्याप्त बस,वषट् -आहुति साधुवाद ।
(घ)शक्त -समर्थ,समर्थ -समर्थ ।

सूचना--तत्----इतर, सर्ववत् ।
 दा---वितृ   भवितवत् ।

व्याकरण
1 सर्व शब्द के रुप पुल्लिंग में स्मरण कीजिए।
2नियम 16इन शब्दों में लगेगा -सर्व,पूर्व,विप्र,इन्द्र,प्रभु,पितृ ।

@@@@सूचना @@@@@@
(क)अकारांत सर्वनाम शब्दों में 'राम 'शब्द के रुप से ये 5 अन्तर होते हैं ।
1प्र बहु में  'ए '
2 चतु  एक   'स्मै '
3षष्ठी एक  'स्मात् '
4षष्ठी बहु  'एषाम् '
5सप्तमी एक 'स्मिन् 'लगेगा ।शेष रामवत् ।
(ख)तत्,यत्, एतत् ,किम् को पुल्लिंग में क्रमशः त,य,एत,क रूप हो जाता है ।केवल तत् और एतत् को प्रथमा एकवचन में क्रमशः सः,एषःहो जाता है ।
जैसे-तत् >सः  तौ  ते ।
2 धातुरुप -यच्छ>यच्छति, वितृ>वितरति, दा>ददाति ।
@नियम 33सर्वनाम शब्दों और विशेषण का वही लिंग,विभक्ति और वचन होता है, जो विशेष्य का होता है ।जैसे -कःनरः।कं नरम् ।केन् नरेण, का बाला ।
@नियम 34 (कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्) दान आदि क्रिया जिसके लिए की जाती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं ।
@नियम 35 (चतुर्थी सम्प्रदाने)सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है । विप्राय धनं ददाति ।
@नियम 36 (नमस्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च) नमः,स्वस्ति,स्वधा,स्वाहा,अलम् ,वषट् के साथ चतुर्थी होती है ।
जैसे -गुरवे नमः। शिष्याय स्वस्ति । अग्नये स्वाहा । पितृभ्यः स्वधा ।इन्द्राय वषट् ।हरिःदैत्येभ्यःअलम् ।
@नियम 37(सन्धि)इको यणचि
इ,ई का 'य ' ।उ,ऊ का 'व '।ऋ का 'र् ' ।लृ का 'ल ' हो जाता है ,यदि बाद में कोई स्वर हो तो । सवर्ण(वैसा ही) हो तो नहीं । जैसे ----प्रति+एकम् =प्रत्येकम् ,इ का य ।
 पठतु +एकम् =पठत्वेकम् ,उ का व ।
 पितृ+आज्ञा =पित्राज्ञा, ऋ का र ।
लृ+आकृति =लाकृति, लृ का ल ।


Monday, 18 April 2016

अभ्यास ९



   ( क  )  गुरु  ( गुरु,  वि ०, भारी,  बडा) , भानु ( सूर्य),   इन्दु  ( चन्द्रमा)  शत्रु ( शत्रु)  शिशु ( बालक) , वायु ( वायु) , पशु ( पशु )
तरु ( वृक्ष ), साधु ( सज्जन, सरल, अच्छा, निपुण  ) । काण  ( काना) , कर्ण ( कान ),  बधिर ( बहरा ),  पाद ( पैर) , खञ्ज ( लगड़ा ),   शब्द्  ( शब्द  ) ,  अर्थ ( अर्थ, धन,  प्रयोजन ), विवाद ( विवाद) । नेत्रम् ( आखँ) , तृणम् ( तिनका) , सुखम् ( सुख) , दुखम् ( दुख) , प्रयोजनम् ( प्रयोजन) ,  हसितम्( हँसना)  । प्रकृति ( स्वभाव ) ।
  ( २४ ) ( ग) अलम् ( बस, पर्याप्त, समर्थ, शक्त)  ।( १)   ।
सूचना  ( क)  गुरु -- साधु, गुरुवत्। काण -- विवाद, रामवत्  ।  नेत्र --- हसित, गृहवत् ।
प्रकति, मतिवत् ।
      व्याकरण  ( गुरु विधिलिंङ्ग, तृतीया अनुस्वार संन्धि)  ।
  १   शब्दरुप --- गुरु शब्द के पुरे रुप स्मरण कर ले । ( देखो शब्द  स ० ४ ) संक्षिप्त रुप लगाकर भानु आदि के गुरुवत रुप बनावें ।
सभी उकारान्त् पुलिंग शब्द गुरु के तुल्य चलेंगे । नियम   १६ इन शब्दो मे लगेगा ---- गुरु शत्रु, तरु । जैसे ----  गुरुणा, गुरुणाम्, शत्रूणा, शत्रूणाम्  ।
   २ . धातुरुप -- 'भू ' विधिलिङ् ( आज्ञा  या चाहिए अर्थ)  संक्षिप्त  एक ० द्वि ० बहु ०
भवेत् भवेताम् भवेयुः प्र० पु०
भवेः भवेतम् भवेत्    म ० पु०
भवेयम् भवेव  भवेम्   उ ० पु०
रूप  एत्  एताम्  एयु:  प्र ० पु ०
       ए   एतम्  एत    म ०  पु ०
      एयम्  एव  एम   उ  ० पु ०
संक्षिप्तरूप लगाकर पठ् आदि के रूप बनावे ।
जैसे --- पठेत्,  लिखेत्,  गच्छेत्,  पश्येत् ।
      कारक  ( तृतीया,  अनुस्वार संन्धि)
* नियम २८---- किम्,  कार्यम्, अर्थ, प्रयोजनम्  ( चारो प्रयोजन अर्थ मे हो तो)  के साथ तृतीया होती हैं ।जैसे  मूर्खेण पुत्रेण किम्,  किं कार्यम्,  कोsर्थ,  किं प्रयोजनम् ।
( मूर्ख पुत्र से क्या लाभ या क्या प्रयोजन)  तृणेन अपि कार्यं भवति ।
  *  नियम  २९  -- अलम्  ( बस, मत)  के साथ तृतीया होती हैं ।जैसे --- अल हसितेन ।
( मत हँसो) , अलं विवादेन ( विवाद  मत करो)  ।
*  नियम  ३०  --- ( येनाङ्गविकार)  शरीर के जिस अंग मे विकार से विकृत दिखाई पढ़े,
उसमें तृतीया होती हैं ।जैसे --- नेत्रेण काण ( एक आँख से काणा) , कर्णेन बधिरः ।
*  नियम  ३१ --( प्रकृत्यादिभ्य उपसख्यानम्) प्रकृति ( स्वभाव)   आदि क्रियाविशेषण शब्दो में तृतीया होती हैं ।
प्रकृत्या साधु ( स्वभाव से सरल)  सुखेन जीवति ।
दुखेन जीवति । सरलतया लिखति ।
*  नियम  ३२ -- ( संन्धि)  -- ( मोsनुस्वार)
पदान्त ( शब्द के अन्तिम ) म् के बाद कोई हल् ( व्यंजन)  हो तो म् को अनुस्वार (-) हो जाता हैं,  स्वर बाद में हो तो नहीं ।रामम् + पश्यति =रामं पश्यति।
रामम् + अपश्यत् = राममपश्यत् ।









अभ्यास ८

(  क) हरि  ( विष्णु, सूर्य, किरण, सिंह, बन्दर) , कवि ( कवि) , यति ( सन्यासी) ,भूपति ( राजा) , सेनापति ( सेनापति) ,  प्रजापति ( प्रजापति, ब्रह्मा ), रवि ( सूर्य) , कपि ( बन्दर) , मुनि ( मुनि) , अग्नि ( आग) , गिरि ( पहाड़) , मरीचि ( किरण) । मेघ ( बादल) , दण्ड ( डडा) । कन्दुकम् ( गेद)  । ( १५ ) ।

( ख)  दह् ( जलाना) , ज्वल् ( जलना) , तप् ( तपना, तपस्या करना) ,  चर् ( चलना,  घुमना) , वृष् (वर्ष्) ( बरसना) , गै ( गाना) । (६ )

(ग)  सह,  साकम्, सार्धम्, समम्  ( चारो का अर्थ है, साथ)   ( ८) ।
सूचना -----  ( क)  हरि ---- मरीचि,  हरिवत्
मेघ ---- दण्ड,  रामवत् ।
कन्दुक ---- पुष्पवत् ।
  (  ख)  दह् ----- गै भवतिवत् ।
                 व्याकरण  ( हरि लङ्, तृतीया)
  १ . शब्दरूप ----  हरि शब्द के पूरे रूप स्मरण कर ले । संक्षिप्त रूप लगाकर कवि आदि के रूप बनाओ । सभी इकारान्त पुल्गि शब्द हरिवत् ।

नियम १६ इन शब्दो मे लगेगा --- हरि,  रवि,  गिरि । जैसे हरिणा, हरीणाम् ।
नियम २२ -- ( पति समास एव)  पति शब्द किसी के अन्त में समस्त होगा तो उसका रूप हरि के तुल्य चलेगा । जैसे भूपतिना, भूपतये, भूपते आदि ।
  २ . धातुरूप ---- 'भू 'लङ्  ( भूतकाल ) ।
अभवत् अभवताम् अभवन् प्र ० पु० ।
अभव अभवतम् अभवत्  म ० पु० ।
अभवम् अभवाव अभवाम   उ  ० पु० ।
संक्षिप्तरूप  एक ० द्वि ० बहु ०
  (  वातु से    अत् अताम् अन्  प्र ० पु०
    पहले अ + )  अ  . अतम् अत म ० पु ०
                    अम् आव आम   उ  ०  पु  ०

सूचना  --- लङ्  मे धातु के पहले  ' अ ' लगेगा  बाद में संक्षिप्तरूप ।जैसे --- अपठत्,  अल्खित्, अदहत्, अज्वलत्, अलपत्, अचरत्, अवषत्,  अगायत् । यदि धातु का प्रथम अक्षर स्वर हो तो  'आ ' लगेगा और वृद्धि होगी ।जैसे इप् >ऐच्छत्,  आगम् > आगच्छत्,  अस् >आसीत्  ।
                 कारक  ( तृतीया, करण)
नियम   २३  -- ( साधकमतम करणम्)  क्रिया के सिद्धि मे सहायक को करण कहते हैं ।
नियम  २४  --- ( कर्तृक्स्णयो स्तृतीया)  करण मे तृतीया होती हैं और कर्मवाच्य या भाववाच्य मे कर्ता मे ।जैसे कन्दुकेन क्रीडति ।दण्डेन चलति । रामेण गृहं गम्यते, रामेण भूयते ।
नियम --- २५  ( सहयुक्तेsप्रधाने ) सह,  साकम्,  समम् ( साथ अर्थ मे)  के साथ तृतीया ही होती हैं ।जैसे --- जनकेन सह,  साकं  सार्ध सम वा गृहं  गच्छति ।
नियम --- २६  ( इत्थभूतलक्षणे ) जिस चिन्ह से किसी व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है,  उसमें तृतीया होती है ।जैसे -- जटाभि,  यति  ( जटा से सन्यासी ज्ञात होता हैं)  ।
नियम -- २७  ( हेतौ)  कारणबोधक शब्दो मे तृतीया होती है ।अध्ययनेन वसति ।
शब्दकोश  २००
           

Sunday, 17 April 2016

Atharv sanskrit: अभ्यास ७

Atharv sanskrit: अभ्यास ७

अभ्यास ७


(क) अजा / बकरी, वसुधा /भूमि,  सुघा/अमृत,  जटा/जटा,  क्षमा/क्षमा,  तण्डुल /चावल, ।दुग्धम् / दूध , शतम्/ सौ,या सो रु०,
(८) भ्रम् / घुमना, रुह /चढ़ना, उगना , त्यज् / छोड़ना,  वस् / रहना,  नी / ले जाना,
ह्न /ले जाना,  कृष / खोढना ,खीचना,  वह् / ले जाना,  ढोना,  दुहू / दुहना,  याच् / मांगना,  दण्ड् / दण्ड देना,  रुध् / रोकना,  चि / चुनना,  ब्रू / बोलना  शास् / बताना,  मथ् / मथना,  मुप् / चुराना ।
सूचना -----  (क)  अजा --- क्षमा, रमावत् । तण्डुल ---- रामवत् ।भ्रम् ----  वह् भवतिवत् ।
        व्याकरण  ( रमा, लृट, द्वितीया, द्विकर्मक)
१   शब्दरूप -- ' रमा ' के पूरे रूप स्मरण कर ले ।( देखो शब्दरूप स ० १३ ) स़ंक्षिप्तरूप लगाकर अजा आदि के रूप बनाओ । नियम १६ इन शब्दों में लगेगा --- रमा, क्षमा । सभी अकारान्त् स्त्रीलिंग शब्द रमा के तुल्य चलेगे ।
२ धातुरुप -"भू "लृट् (भविष्यत्)
भविष्यति   भविष्यतः   भविष्यन्ति
भविष्यसि   भविष्यथः  भविष्यथ
भविष्यामि   भविष्यावः  भविष्यामः
संक्षिप्तरुप
(इ)स्यति  (इ)स्यतः (इ)स्यन्ति
(इ)स्यसि (इ)स्यथः (इ)स्यथ
(इ)स्यामि  (इ)स्यावः (इ)स्यामः
##सूचना -------
 ( क) इन पूर्वोक्त धातुओ मे ' इष्यति ' ही लगाकर रूप बनावें पठिष्यति,  लेखिष्यति,  गमिष्यति,  हसिष्यति, आगमिष्यति, रक्षिष्यति,  वदिष्यति,  पतिष्यति,  स्मृ >स्मरिष्यति,  कृ >करिष्यति,  अस् >भविष्यति, चुर् > चोरयिष्यति, चिन्त् >चिन्तयिष्यति, कथ् > कथयिष्यति, भक्ष् >भक्षयिष्यति,  इष् > एषिष्यति,  खाद् > खादिष्य़ति,  धावष्यति,  क्रिडिष्यति,  चलिष्यति, भ्रमिष्यति,  ह> हरिष्यति, ज्वलिष्यति , चरिष्यति,  वृष् > वर्षिष्यति ।
 ( ख)  इनमें स्यति लगेगा ---पच् > पक्ष्यति, नम् > नस्यति,  दृश > द्रक्ष्यति, सद् > सत्स्यति,  स्था > स्थास्यति,  पा > पास्यति,  घ्रा > घ्रास्यति, जि > जेष्यति,  तुद् > तोत्स्यति, स्पृश > स्प्रक्ष्यति,  प्रच्छ् > प्रक्ष्यति,  रुह्> रोक्ष्यति,  त्यज् > त्यक्ष्यति, वस् > वत्स्यति, नी > नेष्यति,  कृष > कर्क्ष्यति,  वह् > वक्ष्यति,  दह् > धक्ष्यति तप् > तप्स्यति,  गे> गारयति ।
  २ ' नी ' आदि के क्रमशः लट् में ऐसे रूप चलेगे  --- नयति, हरति, कर्षति, वहति,  ( भवतिवत्)  । दोग्धि, याचते, दण्डयति, स्णद्धि, चिनोति,  ब्रवीति, शास्ति,  मथ्नाति मुष्णाति ।
नियम  २१ --- ये धातुएँ द्विकर्मक हैं । ( इन अर्थो की अन्य धातुएँ भी  ) । इनके साथ को कर्म कहते हैं --- दुहू, याच्,  पच्, दण्ड्,  रुध्,  प्रच्छ्, चि,  ब्रृ,  शास्, जि, मध्,, मुष्, नी, हृ, कृष, वह् ।
शब्दकोष ---- १७५  ) 

Wednesday, 13 April 2016

अभ्यास ६


(क) धनम् धन, नगरम् नगर,आसनम् आसन, अध्ययनम् पढ़ना,ज्ञानम् ज्ञान, कार्यम् कार्य,ओदनम् चावल, वर्षम् वर्ष,दिनम् दिन ।
(ख)खाद् खाना ,धाव् दौड़ना,क्रीड् खेलना,चल् चलना,अधिशी सोना, अधिस्था बैठना,अध्यास् बैठना
(ग)उभयतः दोनों ओर, सर्वतः चारों ओर,धिक् धिक्कार,उपरि ऊपर,अधः नीचे, अन्तरा बीच में, अन्तरेण बिना,विना बिना ।
व्याकरण
1 'गृह ' शब्द के पूरे रुप स्मरण कर लें ।
सभी अकारान्त नपुंसकलिङ्ग शब्द गृह के तुल्य चलेंगे ।
नियम 16 --र् और ष् के बाद न को ण हो जाता है, यदि अट् (स्वर+ह य व र ), क वर्ग, प वर्ग, आ,न् बीच में हो तो भी ।
जैसे -इन शब्दों में यह नियम लगेगा ----गृहम्, नगरम्, कार्यम्,वर्षम्, पुष्पम्,पत्रम् ।अत: इनमें प्रथमा,द्वितीया बहुवचन में "आणि " तृतीया एकवचन में "एण्  " षष्ठी बहुवचन में "आणाम् "लगेगा ।
धातुरुप "भू "लोट् (आज्ञार्थ)
भवतु     भवताम्    भवन्तु    प्र.पु.
भव       भवतम्      भवत    म.पु.
भवानि    भवाव      भवाम   उ.पु.
संक्षिप्त रुप
अतु    अताम्     अन्तु
अ       अतम्      अत
आनि   आव       आम
" खाद् " आदि के रुप भवतु के तुल्य चलेंगे ।
जैसे --खादतु, धावतु, क्रीडतु, चलतु,कथयतु, भक्षयतु ।लट् में अधीशी>अधिशेते, अधिस्था>अधितिष्ठति, अध्यास्>अध्यास्ते ।
कारक द्वितीया
नियम 17-उभयत: सर्वतः, धिक् उपर्युपरि, अधोऽध: ,अध्यधि के साथ द्वितीया होती है ।
जैसे -ग्रामम् उभयतः ।
नियम 18-अन्तरा,अन्तरेण, विना के साथ द्वितीया होती है ।गङ्गा यमुनां च अन्तरा प्रयागः अस्ति । (अन्तरान्तरेणयुक्ते)
नियम 19-अधिशी,अधिस्था, अध्यास धातु के साथ द्वितीया होती है । आसनम् अधिशेते ।(अधिशीङ्स्थासां कर्म)
नियम-20--समय और स्थान की दूरीवाची शब्दों में द्वितीया होती है । दश दिनानि ।क्रोशं (कोस भर) गच्छति ।

Tuesday, 12 April 2016

अभ्यास ५


(क)जनकः (पिता) ,पुत्रः (पुत्र) ,सूर्यः (सूर्य) ,चन्द्रः(चन्द्रमा) ,सज्जन: (सज्जन),दुर्जन: (दुर्जन ),प्राज्ञः (विद्वान),लोक: (संसार, लोग),उपाध्यायः (गुरु) ,शिष्यः (शिष्य) ,प्रश्नः (प्रश्न) ,क्रोश: (कोस) ,धर्मः (धर्म) ,सागरः (सागर,समुद्र) ।
(ख)तुद् (दुःख देना ),इष् (चाहना),स्पृश् (छूना),प्रच्छ्(पूछना) ।
(ग)अभितः (दोनों ओर),परितः (चारों ओर),समया (समीप),निकषा(समीप),हा(दु:ख,खेद) प्रति (ओर),अनु(पीछे,ओर)
व्याकरणं
1 शब्दरुप --"राम "शब्द के पूरे रुप ठीक से स्मरण कर लें ।पुत्र,सूर्य, चन्द्र, शिष्य, धर्म, सागर आदि अकारान्त शब्दों के रुप रामवत् बनेगा ।
2 धातुरुप "भू "लट् वर्तमान
भवति भवत: भवन्ति  प्र. पु.
भवसि भवथ: भवथ   म.पु.
भवामि भवाव: भवाम: उ.पु.
नोट--तुद् आदि के रुप भवति के तुल्य चलेंगे।
इष्> इच्छ, प्रच्छ्>पृच्छ हो जाता है ।

कारक (प्रथमा,सम्बोधन, द्वितीया)
नियम10- कर्ता (व्यक्तिनाम ,वस्तुनाम आदि )में प्रथमा होती है ।जैसे -राम: पठति
नियम 11- किसी को संबोधन करने में संबोधन विभक्ति होती है ।जैसे हे  राम!  हे कृष्ण!
नियम 12- कर्ता जिस को बहुत चाहता है उसे कर्म कहते है । (कर्तुरीप्सिततमं कर्म)
नियम13- कर्म में द्वितिया होती है ।जैसे-राम: विद्यालयं गच्छति (कर्मणि द्वितीया)
नियम 14 अभितः (दोनों ओर),परितः (चारों ओर),समया (समीप),निकषा(समीप),हा(दु:ख,खेद) प्रति (ओर),अनु(पीछे,ओर)के साथ द्वितीया होती है।
नियम 15 गति (चलना, हिलना, जाना)अर्थवाली धातुओं के साथ द्वितीया होती है ।जैसे-ग्रामं गच्छति ।वनं विचरति ।
शब्दकोश 125


Sunday, 10 April 2016

अभ्यास ४

अभ्यास 4
(ख)कृ करना, अस् होना,चुर् चुराना, चिन्त् चिन्तन करना सोचना, कथ् कहना, भक्ष् खाना
(ग)इत्थम् ऐसे, तथा वैसे,यथा जैसे, कथम् कैसे,अपि भी,एव ही,च और,किन्तु किन्तु, परन्तु परन्तु
(घ)एकम् एक, द्वौ दो,त्रय: तीन, चत्वार: चार,पञ्च पाँच, षट् छ: ,सप्त सात,अष्ट आठ, नव नौ,दश दस ।
व्याकरण
1"कृ " करना(लट् लकार, वर्तमान काल)
करोति   कुरुत:    कुर्वन्ति  प्र . पु  .
करोषि   कुरुथ:    कुरुथ   म .  पु.
करोमि    कुर्व:      कुर्म:    उ .  पु.
2"अस् " होना लट्
अस्ति   स्त:    सन्ति    प्र . पु.
असि    स्थ:     स्थ      म . पु.
अस्मि   स्व:     स्म:     उ . पु.
3चुर् आदि धातुओं निम्नलिखित रुप बनाकर "भवति "के तुल्य रुप चलेंगें --------
चुर् चोरयति, चिन्त चिन्तयति,  कथ्  कथयति, भक्ष् भक्षयति    ।
4प्रत्याहार बनाने के लिए इन 14 माहेश्वर सूत्रों को शुद्ध स्मरण कर लें ---------
1अइउण् 2 ऋलृक् 3 एओङ् 4ऐऔच् 5हयवरट् 6लण् 7 ञमङणनम् 8झभञ् 9घढदष् 10जबगडदश 11खफछठथचटतव्
12कपय् 13शषसर् 14हल्
इन सूत्रों में पूरी वर्णमाला इसप्रकार रखी हुई है --पहले स्वर, फिर अन्त:स्थ, फिर क्रमश: वर्ग के पंचम, चतुर्थ,तृतीय,द्वितीय, प्रथम अक्षर, फिर अन्त में उष्म हैं ।
5 प्रत्याहार संक्षेप में कथन को कहते है। इन सूत्र से प्रत्याहार बनाने के नियम यह है---
( क) सूत्र के अंतिम अक्षर (ण् क् आदि) प्रत्याहार में नही  गिने जाती है ।अंतिम अक्षर प्रत्याहार बनाने के साधन है
( ख) जो प्रत्याहार बनाना हो तो उसके लिए  प्रथम अक्षर सूत्र में जहां हो ,वहां ढूंढना चाहिए । अंतिम अक्षर सूत्र के अंतिम अक्षरों में ढूंढिए । बीच के सारे अक्षर उस प्रत्याहार में माने जाएंगे ।जैसे -अल्  प्रत्याहार -अ से लेकर अंत तक । प्रारंभ में अ है अंतिम सूत्र में वे है ।अल् =पूरी वर्णमाला ।अच् अ से ऐऔच् के च तक  ,अर्थात् सारे स्वर ।हल् =हयवरट् के ह से हल् के ल् तक, अर्थात् सारे व्यंजन । अक् =अ,इ,उ,ऋ,लृ । इक् =इ,उ,ऋ,लृ ।यण्=य,व,र,ल ।शर् =श, ष, स ।
नियम9- 'च' का प्रयोग उससे एक शब्द के बाद कीजिए । फल और फूल --फलं पुष्पं च ।फलं च पुष्पम्, अशुद्ध है ।
शब्दकोश 75+25=100

अभ्यास ३

अभ्यास 3
(क)अहम् मैं,आवाम् हम दोनों, वयम् हम सब, रमा लक्ष्मी,बाला लड़की,कन्या लड़की,कथा कथा कहानी, क्रीडा खेल, लता लता,पाठशाला पाठशाला, विद्या विद्या ।
(ख)दृश् देखना, स्था रुकना, सद् बैठना, पा पीना, घ्रा सूंघना,स्मृ स्मरण करना, जि जीतना ।
(ग)इत: यहाँ से,तत: वहाँ से,यत: जहाँ से,कुत: कहाँ से,कथम् क्यों कैसे, न नहीं ,किम् क्या ।

व्याकरण
रमा रमे  रमा: (कर्ता कारक प्र. वि.)
रमाम्  रमे  रमा: (कर्म कारक द्वि .वि.)

संक्षिप्त रुप
आ     ए    आ:
आम्  ए      आ:
बाला आदि के रुप संक्षिप्त रुप लगाकर बनाईये ।
"भू "लट् लकार उत्तम पुरुष
भवामि   भवाव:     भवाम:
संक्षिप्त रुप
आमि    आव:   आम:
विशेष ---दृश् का पश्य से रुप बनेगा ।पश्यामि ।
स्था -तिष्ठ तिष्ठामि ।
सद् -सीद्   ,पा -पिब्, घ्रा -जिघ्र, गम् -गच्छ, स्मृ -स्मर, जि -जय ।
शब्दकोश 50+25=75

Saturday, 9 April 2016

अभ्यास २

अभ्यास 2
(क)त्वम् तुम, युवाम् तुम दोनों, यूयम् तुम सब,फलम् फल, पुस्तकम् पुस्तक, पुष्पम् फूल, पत्रम् चिट्ठी पत्र, भोजनम् भोजन, जलम् जल, राज्यम् राज्य, सत्यम् सच सत्य, गृहम् घर, वनम् वन जंगल ।
(ख)रक्ष् रक्षा करना, वद् बोलना,पच् पकाना, पत्  गिरना, नम् नमस्कार करना ।
(ग) अद्य आज, सम्प्रति इदानीम् अधुना (तीनों का अर्थ है) अब अभी, यदा जब,तदा तब, कदा कब ।
व्याकरण (लट्, मध्यम पुरुष, कारक परिचय)
1     फलम्   फले  फलानि (प्र.कर्ता कारक)
       फलम्   फले  फलानि  (द्वि.कर्म कारक)
संक्षिप्त रुप    अम्     ए    आनि
                    अम्     ए    आनि
सूचना --पुस्तक आदि के रुप ऐसे ही चलेंगें ।
2 "भू "(लट् मध्यम पुरुष )
भवसि भवथ: भवथ
संक्षिप्त रुप
असि अथ: अथ
रक्ष् आदि के रूप इसी प्रकार चलेंगें ।
जैसे-रक्षसि रक्षथ: रक्षथ, वदसि वदथ: वदथ ।
नियम 7(अच्हीन परेण संयोज्यम्) -हल् व्यंजन आगे के स्वर से मिल जाता है ।
(यह नियम एच्छिक है) जैसे -त्वम् +अद्य त्वमद्य ।यूयं +इदानीम्  यूयमिदानीम् ।त्वम् +एव त्वमेव ।
शब्दकोश -अभ्यास 1का 25+अभ्यास 2 का 25=50 ।


अभ्यास

अभ्यास १
(क) सः=वह, तौ =वे दोनों, ते =वे सब, भवान् =आप, भवती =आप(स्त्री.),रामः =राम, ईश्वरः =ईश्वर, मनुष्यः =मनुष्य ,नरः= नर(मनुष्य),ग्रामः=गाँव, नृपः=राजा, विद्यालयः =विद्यालय ।
(ख)भू= होना, पठ् =पढ़ना, लिख्= लिखना, हस् =हँसना, गम् =जाना, आगम् =आना,
(ग) अत्र =यहाँ,इह =यहाँ, यत्र= जहाँ, तत्र= वहाँ, कुत्र =कहाँ, क्व= कहाँ ।
शब्दकोश---25
सूचना शब्दकोश के लिए ये संकेत स्मरण कर लें --------
(क)=संज्ञा या सर्वनाम शब्द ।
(ख)=धातु या क्रिया शब्द ।
(ग)=अव्यय या क्रिया विशेषण ।
(घ)=विशेषण शब्द ।
व्याकरण(लट्,परस्मैपदी,कर्तृवाच्य)
१ रामः रामौ रामाः (प्रथमा,कर्ता कारक)
  रामम् रामौ रामान्(द्वि.कर्म कारक)
संक्षिप्तरुप अः औ आः
             अम् औ आन्

संक्षिप्तरुप शब्द के अन्त में लगेगा ।
जैसे बालकः बालकौ बालकाः आदि ।
२"भू " 'लट् 'लकार (वर्तमानकाल)
 भवति  भवतः  भवन्ति  प्रथमपुरुष
संक्षिप्तरुप
अति अतः अन्ति ।
संक्षिप्तरुप लगा अन्य धातुओं को रुप बनाईये,जैसे पठति पठतःपठन्ति आदि ।

नियम१  --कर्ता के अनुसार क्रिया का वचन और पुरुष होता है ।जैसे सः पठति ।कर्ता प्रथम पुरुष एकवचन है तो क्रिया भी प्रथमपुरुष एकवचन होगी ।
२ "भवत् "आप)शब्द के साथ सदा प्र.पु.आता है ।
३ तीनों लिंगों में धातुओं का रुप वही रहता है ।
४ कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया आती है ।
५ "अपदं न प्रयुञ्जीत" बिना प्रत्यय लगाये शब्द या धातु का प्रयोग न करें ।
६ एक अर्थवाले शब्दों में से एक शब्द का ही प्रयोग करें ।

क्रमश:...........................