*प्रौढरचनानुवाद कौमुदी*
[शब्दकोष -- 25]
(क) राम: (राम), पातोत्पात :( उत्थान-पतन),
सद्वृत्त:(सदाचारी) , दुराचार:(दुराचारी, वैधेय:(मूर्ख), बुभुक्षित:(भूखा),मल्ल:(पहलवान) ।(7)।
(ख) भू(होना),अनुभू(अनुभव करना),प्रभू( 1प्रकट होना ,
2समर्थ होना, 3अधिकार होना, 4बराबर होना, 5 समाना), पराभू(हराना), परिभू(तिरस्कृत करना) , अभिभू( हराना दबाना), सम्भू(उत्पन्न होना) , उद्भू(पैदा होना) , आविर्भू(प्रकट होना), तिरोभू( छिप जाना), प्रादुर्भू(
जन्म लेना) , अर्ह्( योग्य होना), परिहस्( हँसी करना), प्रलप्( बकवाद करना)।(14)।
(ग) परमार्थत: ( सत्य ठीक) , नाम( निश्चय से)।2।
(घ), मधुरम्( मीठा ), तीव्रम( तेज
(2) ।
व्याकरण ( राम, लट्, प्रथमा
द्वितीया)
¹ राम शब्द के पूरे रूप स्मरण करो ।
(1) राम(राम)
राम: रामौ रामा:
रामम् " रामान्
रामेण रामाभ्याम् रामै:
रामाय " रामेभ्य:
रामात् " "
रामस्य रामयो: रामाणाम्
रामे " रामेषु
हे राम हे रामौ हे रामा:
² भू तथा हस् धातुओं के रूप स्मरण करो ।
(1) भू ( होना) लट् ( वर्तमान)
भवति भवत: भवन्ति
भवसि भवथ: भवथ
भवामि भवाव: भवाम:
(2) हस् (हँसना) (भू के तुल्य) ।
हसति हसत: हसन्ति
हससि हसथ: हसथ
हसामि हसाव: हसाम:
नियम 1---कर्तृवाच्य में कर्ता
( व्यक्तिनाम, वस्तुनाम आदि
में प्रथमा होती है और कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा होती है । जैसे --राम: पठति
अश्वो धावति । रामेण पाठ:
पठ्यते ।
नियम 2-- किसी के अभिमुखी करण तथा संमुखीकरण में ( सम्बोधन करने में) सम्बोधन विभक्ति होती है । जैसे --हे राम, हे कृष्ण ।
नियम3-- ( कर्तुरीप्सततमं कर्म) कर्ता जिसको ( व्यक्ति, वस्तु या क्रिया को)
विशेष रूप से चाहता है, उसे कर्म कहते हैं ।
नियम 4-- ( कर्मणि द्वितीया
कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- स पुस्तकं पठति । स रामं पश्यति । ते प्रश्नं पृच्छन्ति ।
नियम5-- (अभित: परित: समयानिकषाहाप्रतियोगेsपि
अभित:, परित:, समया, निकषा, हा और प्रति के साथ द्वितीया होती है । जैसे --नृपम् अभित: परित:वा ।
ग्रामं समया निकषा वा ( गाँव के समीप) । बुभुक्षितं न प्रतिभाति किचिंत् ।
नियम6--( उभसर्वतसो: कार्या0)उभयत: सर्वत:, धिक् उपर्युपरि, अधोsध: अध्यधि के साथ द्वितीया होती है । जैसे --कृष्णमुभयतो गोपा: ।नृपं सर्वो जना: । धिक् नास्तिकम् ।
नियम7-- गति ( चलना हिलना, जाना) अर्थ की धातुओं के साथ द्वितीया होती है । गत्यर्थ का आलंकारिक प्रयोग होगा तो भी द्वितीया होगी ।जैसे-- गृहं गच्छति । वनं विचरति ।
तृप्तिं ययौ । मम स्मृति यात:
उमाख्यां जगाम । निद्रां ययौ
नियम8--- अकर्मक धातुएँ उपसर्ग पहले लगने से प्राय:
अर्थानुसार सकर्मक हो जाती हैं, उनके साथ द्वितीया होगी । जैसे-- हर्षमनुभवति । स खलम् अभिभवति । स शत्रुं परिभवति पराभवति वा । वृक्षमारोहति । दिवमुत्पतति
स्वामिचित्तमनुवर्तते ।
नियम9---- स्मृ धातु के साथ
साधारण स्मरण में द्वितीया
होती है। खेदपूर्वक स्मरण में
षष्ठी होती है । जैसे-- पाठं स्मरति (वह पाठ याद करता है) । बाल: मातु: स्मरति ( बालक खेद के साथ माता को स्मरण करता है ।)
क्रमश: ............
[शब्दकोष -- 25]
(क) राम: (राम), पातोत्पात :( उत्थान-पतन),
सद्वृत्त:(सदाचारी) , दुराचार:(दुराचारी, वैधेय:(मूर्ख), बुभुक्षित:(भूखा),मल्ल:(पहलवान) ।(7)।
(ख) भू(होना),अनुभू(अनुभव करना),प्रभू( 1प्रकट होना ,
2समर्थ होना, 3अधिकार होना, 4बराबर होना, 5 समाना), पराभू(हराना), परिभू(तिरस्कृत करना) , अभिभू( हराना दबाना), सम्भू(उत्पन्न होना) , उद्भू(पैदा होना) , आविर्भू(प्रकट होना), तिरोभू( छिप जाना), प्रादुर्भू(
जन्म लेना) , अर्ह्( योग्य होना), परिहस्( हँसी करना), प्रलप्( बकवाद करना)।(14)।
(ग) परमार्थत: ( सत्य ठीक) , नाम( निश्चय से)।2।
(घ), मधुरम्( मीठा ), तीव्रम( तेज
(2) ।
व्याकरण ( राम, लट्, प्रथमा
द्वितीया)
¹ राम शब्द के पूरे रूप स्मरण करो ।
(1) राम(राम)
राम: रामौ रामा:
रामम् " रामान्
रामेण रामाभ्याम् रामै:
रामाय " रामेभ्य:
रामात् " "
रामस्य रामयो: रामाणाम्
रामे " रामेषु
हे राम हे रामौ हे रामा:
² भू तथा हस् धातुओं के रूप स्मरण करो ।
(1) भू ( होना) लट् ( वर्तमान)
भवति भवत: भवन्ति
भवसि भवथ: भवथ
भवामि भवाव: भवाम:
(2) हस् (हँसना) (भू के तुल्य) ।
हसति हसत: हसन्ति
हससि हसथ: हसथ
हसामि हसाव: हसाम:
नियम 1---कर्तृवाच्य में कर्ता
( व्यक्तिनाम, वस्तुनाम आदि
में प्रथमा होती है और कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा होती है । जैसे --राम: पठति
अश्वो धावति । रामेण पाठ:
पठ्यते ।
नियम 2-- किसी के अभिमुखी करण तथा संमुखीकरण में ( सम्बोधन करने में) सम्बोधन विभक्ति होती है । जैसे --हे राम, हे कृष्ण ।
नियम3-- ( कर्तुरीप्सततमं कर्म) कर्ता जिसको ( व्यक्ति, वस्तु या क्रिया को)
विशेष रूप से चाहता है, उसे कर्म कहते हैं ।
नियम 4-- ( कर्मणि द्वितीया
कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- स पुस्तकं पठति । स रामं पश्यति । ते प्रश्नं पृच्छन्ति ।
नियम5-- (अभित: परित: समयानिकषाहाप्रतियोगेsपि
अभित:, परित:, समया, निकषा, हा और प्रति के साथ द्वितीया होती है । जैसे --नृपम् अभित: परित:वा ।
ग्रामं समया निकषा वा ( गाँव के समीप) । बुभुक्षितं न प्रतिभाति किचिंत् ।
नियम6--( उभसर्वतसो: कार्या0)उभयत: सर्वत:, धिक् उपर्युपरि, अधोsध: अध्यधि के साथ द्वितीया होती है । जैसे --कृष्णमुभयतो गोपा: ।नृपं सर्वो जना: । धिक् नास्तिकम् ।
नियम7-- गति ( चलना हिलना, जाना) अर्थ की धातुओं के साथ द्वितीया होती है । गत्यर्थ का आलंकारिक प्रयोग होगा तो भी द्वितीया होगी ।जैसे-- गृहं गच्छति । वनं विचरति ।
तृप्तिं ययौ । मम स्मृति यात:
उमाख्यां जगाम । निद्रां ययौ
नियम8--- अकर्मक धातुएँ उपसर्ग पहले लगने से प्राय:
अर्थानुसार सकर्मक हो जाती हैं, उनके साथ द्वितीया होगी । जैसे-- हर्षमनुभवति । स खलम् अभिभवति । स शत्रुं परिभवति पराभवति वा । वृक्षमारोहति । दिवमुत्पतति
स्वामिचित्तमनुवर्तते ।
नियम9---- स्मृ धातु के साथ
साधारण स्मरण में द्वितीया
होती है। खेदपूर्वक स्मरण में
षष्ठी होती है । जैसे-- पाठं स्मरति (वह पाठ याद करता है) । बाल: मातु: स्मरति ( बालक खेद के साथ माता को स्मरण करता है ।)
क्रमश: ............