Sanskrit vyakaran

Saturday, 7 January 2017

  *प्रौढरचनानुवाद कौमुदी*

 [शब्दकोष -- 25]

(क) राम: (राम), पातोत्पात :( उत्थान-पतन),
सद्वृत्त:(सदाचारी) , दुराचार:(दुराचारी, वैधेय:(मूर्ख), बुभुक्षित:(भूखा),मल्ल:(पहलवान) ।(7)।

 (ख) भू(होना),अनुभू(अनुभव करना),प्रभू( 1प्रकट होना ,
2समर्थ होना, 3अधिकार होना, 4बराबर होना, 5 समाना), पराभू(हराना), परिभू(तिरस्कृत करना) , अभिभू( हराना दबाना), सम्भू(उत्पन्न होना) , उद्भू(पैदा होना) , आविर्भू(प्रकट होना), तिरोभू( छिप जाना), प्रादुर्भू(
जन्म लेना) , अर्ह्( योग्य होना), परिहस्( हँसी करना), प्रलप्( बकवाद करना)।(14)।

 (ग) परमार्थत: ( सत्य ठीक) , नाम( निश्चय से)।2।

 (घ), मधुरम्( मीठा ), तीव्रम( तेज
(2) ।


व्याकरण ( राम, लट्, प्रथमा
द्वितीया)
¹ राम शब्द के पूरे रूप स्मरण करो ।
   (1) राम(राम)
राम:  रामौ     रामा:
रामम्  "        रामान्
रामेण  रामाभ्याम्   रामै:
रामाय      "          रामेभ्य:
रामात्      "             "
रामस्य     रामयो:  रामाणाम्
रामे           "         रामेषु
हे राम   हे रामौ      हे रामा:
² भू तथा हस् धातुओं के रूप स्मरण करो ।
 (1)  भू ( होना)  लट् ( वर्तमान)
     भवति     भवत: भवन्ति
     भवसि    भवथ:  भवथ
    भवामि    भवाव: भवाम:
(2)  हस् (हँसना) (भू के तुल्य) ।
   हसति    हसत:  हसन्ति
   हससि   हसथ:  हसथ
हसामि    हसाव:  हसाम:

नियम 1---कर्तृवाच्य में कर्ता
( व्यक्तिनाम, वस्तुनाम आदि
में प्रथमा होती है और कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा होती है । जैसे --राम: पठति
अश्वो धावति । रामेण पाठ:
पठ्यते ।


नियम 2-- किसी के अभिमुखी करण तथा संमुखीकरण में ( सम्बोधन करने में)  सम्बोधन विभक्ति होती है । जैसे --हे राम, हे कृष्ण ।

नियम3-- ( कर्तुरीप्सततमं कर्म)  कर्ता जिसको ( व्यक्ति, वस्तु या क्रिया को)
विशेष रूप से चाहता है, उसे कर्म कहते हैं ।

नियम 4-- ( कर्मणि द्वितीया
कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- स पुस्तकं पठति । स रामं पश्यति । ते प्रश्नं पृच्छन्ति ।

नियम5-- (अभित: परित: समयानिकषाहाप्रतियोगेsपि
अभित:, परित:, समया, निकषा, हा और प्रति के साथ द्वितीया होती है । जैसे --नृपम् अभित: परित:वा ।
ग्रामं समया निकषा वा ( गाँव के समीप) । बुभुक्षितं न प्रतिभाति किचिंत् ।

नियम6--( उभसर्वतसो: कार्या0)उभयत: सर्वत:, धिक् उपर्युपरि, अधोsध: अध्यधि के साथ द्वितीया होती है । जैसे --कृष्णमुभयतो गोपा: ।नृपं सर्वो जना: । धिक् नास्तिकम् ।

नियम7-- गति ( चलना हिलना, जाना)  अर्थ की धातुओं के साथ द्वितीया होती है । गत्यर्थ का आलंकारिक प्रयोग होगा तो भी द्वितीया होगी ।जैसे-- गृहं गच्छति । वनं विचरति ।
तृप्तिं ययौ । मम स्मृति यात:
उमाख्यां जगाम । निद्रां ययौ

नियम8--- अकर्मक धातुएँ उपसर्ग पहले लगने से प्राय:
अर्थानुसार सकर्मक हो जाती हैं, उनके साथ द्वितीया होगी । जैसे-- हर्षमनुभवति । स खलम् अभिभवति । स शत्रुं परिभवति पराभवति वा । वृक्षमारोहति । दिवमुत्पतति
स्वामिचित्तमनुवर्तते ।

नियम9---- स्मृ धातु के साथ
साधारण स्मरण में द्वितीया
होती है। खेदपूर्वक स्मरण में
षष्ठी होती है । जैसे--  पाठं स्मरति (वह पाठ याद करता है) । बाल: मातु: स्मरति ( बालक खेद के साथ माता को स्मरण करता है ।)

 क्रमश: ............